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Sundar Kand path in hindi : नमस्कार दोस्तों आज हम आपके लिए श्री हनुमान जी का सुंदरकांड (Sundar Kand) पाठ का पीडीऍफ़ ले कर आये है | आप यहाँ पर फाइल डाउनलोड कर सकते है साथ ही यहाँ पर पढ़ सकते है | आप को यहाँ पर हर पोस्ट में बहुत कुछ सिखने को मिलता है क्योकि हम हर पोस्ट में टॉपिक से जुडी हर खबर आप तक पहुचने की कोशिश करते है |
Sundar Kand : पाठ भगवान श्री हनुमान जी को खुश करने का एक पाठ या फिर हनुमान जी को खुश करने का एक माध्यम भी बोल सकते है | बजरंग बलि हनुमान जी लौकप्रिय भगवानो में पूजे जाते है | श्री संकट मोचन हनुमान जी को बुधि, बल के देवता है|
सुन्दरकाण्ड (Sundar Kand) में श्री वीर हनुमान जी के द्वारा किये गए प्रसिद कार्यो का उल्लेख किया गया है | सुंदरकांड पाठ हिंदी में pdf को रामायण के एक भाग से लिया गया है | इस को महर्षि वल्मिली जी के द्वरा लिखी गई है | सुन्दरकाण्ड पाठ में हनुमान जी लंका में जब जाते है तब से लेकर वापस आने तक का वर्णन किया गया है |
Sunderkand PDF is very revered in Hindu religion. There is a text of Lord Shri Hanuman ji. It is a belief that Hanuman ji becomes happy by reading Sunderkand Path PDF. God fulfills all the wishes of the reciter.
In Sunderkand, there is an account of Hanuman Ji going to search for Mother Sita in Lanka and even burning Lanka.
Today in this article, we will provide you with the complete text of Sunderkand in PDF so that you can recite Sunderkand from your mobile itself.
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SundarKand Path File Details | सुन्दर कांड पाठ फाइल की जानकारी
Name of the PDF File | SundarKand Path PDF in Hindi (सुंदरकांड पाठ हिंदी में pdf) |
PDF File Size | 204 KB |
Categories | Religious |
Source | PDFHIND.COM |
Uploaded on | 29-12-2021 |
PDF Language | HINDI |
सुन्दरकाण्ड पाठ को पढने के फायेदे | Benefits of Sundarkand Path
- सुन्दरकाण्ड का पाठ करने से हमारे मन में सकारात्मक सोच तथा समानता का भाव पैदा होता है |
- सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से मनुष्य के मन में किसी भी तरह का भय नहीं रहता है और वह स्वतंत्र जीवन जीता है |
- सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से भगवान श्री राम की भी कृपा बनी रहती है क्योंकि रामजी के सबसे प्रिय भगत है हनुमान जी
- सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव से भी बचा जा सकता है |
- सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से दीर्घायु, सुख, समृद्धि, दुखों से छुटकारा आदि चीजों में लाभ मिलता है
- सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होकर अपने प्यारे भक्तों की हमेशा रक्षा करते हैं और उन्हें बुराइयों से बचाते हैं
- मनोवेज्ञानिको ने भी बताया है की सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढाता है|
- सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करने से शनि की दशा से भी बचा जाता है |
कैसे करे सुन्दरकाण्ड का पाठ | How to Recite Sunderkand
- सुबह जल्दी उठ कर नित्य क्रिया कर के जल्दी स्नान करे |
- फिर साफ कपडे पहन कर मंदिर में या अपने पूजा का स्थान पर पूजा सामग्री तैयार करे |
- अब सबसे पहले भगवन की मूर्ति / प्रतिमा के स्नान के लिए ताम्बे के लोटा / मिटटी का कलश में शुद्ध जल ले कर स्नान करावे |
- फिर पूजा सामग्री ( चावल, कुमकुम, दीपक, घी, धूपबत्ती, अष्टगंध ) तैयार करे |
- प्रसाद सामग्री ( फल, दूध, मिठाई, चूरमा, नारियल, पंचामृत, पान आदि ) अपनी श्रद्धा के अनुसार ले सकते है |
- पूजा सुरु करने से पहले अपने माथे पर तिलक लायगे |
- श्री गणेश जी का नाम ले कर पूजा सुरु करे |
- सुन्दरकाण्ड पाठ सम्पूर्ण पढ़े और पाठ को सुरु कर देने के बाद बिच में उठाना नहीं चाहिय और ना ही कुछ खाना चाहिय |
- पाठ सम्पूर्ण हो जाने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ जरुर करे |
- पूजा तो पूर्ण करने के तुरंत बाद प्रशाद बाटे और खुद भी प्रशाद ले |
सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड सुनें जया किशोरी जी की आवाज में | Sampurna Sundarkand video
सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड पाठ सारांश संशिप्त में | sunderkand pdf download in hindi Summary
प्यारे भगतो जैसे की हम ने आप को बताया है की हनुमान जी का सुन्दरकाण्ड (Sundar Kand path in hindi) में लंका में जब जाते है सीता माता को खोजने के लिए जब से लेकर लंका का दहन कर के वापस आने तक का वर्णन किया गया है तो चलिय अब हम आप को इस के बारे में बताते है |
श्री बजरंग बलि हनुमान जी जब लंका के लिए रवाना होते है तब कुछ दुरी तय करने के बाद माता सुरसा द्वरा ली पूछे गए जवाबो को आसानी से देने के बाद माता का आशीर्वाद पा कर आगे रास्ते में मिली राक्षसी का वध किया | वहां से जब हनुमान जी लंका सेर कुछ ही दुरी पर थे तब लंकिनी को घायल कर के लंका में घुस गए | वहां पर हनुमान जी विभीषण से मिल कर अशोकवाटिका में पहुच कर त्रिजटा राक्षसी को सांत्वना दी |
मोका देखकर वीर हनुमान जी ने माता सीता को अपना परिचय देते हुवे भगवान श्री राम जी द्वरा दी गई पहचान के लिए मुंदरी (अंगूठी) माता को सोप दी | फिर माता जी के पास से हनुमान जी ने लंका को धवस्त करने लगा और रावन के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया | मेघनाथ ने भगवन श्री हनुमान जी को नागपास में बंधी बना लिया और रावन के समक्ष पेश किया |
रावन के उपदेशो के अनुसार हनुमान की पूछ को आग लगा दी गई जिस से क्रोधित हो कर संकट मोचन हनुमान जी ने लंका को जला कर वापिस माता सीता द्वरा दी गई अपनी चुडामणि ले कर वहां से वापस आने को चल दिए | और श्री राम के पास आ गए | उधर विभीषण ने रावन को समझाने की कोशिस की लेकिन रावन अपने घमंड के कारण विभीषण को वहां से बेइज्जत कर निकाल दिया |
विभीषण वहां से सीधा श्री राम की शरण में आ गया और श्री राम ने विभीषण को लंका के नए राजा बनाने की घोषणा कर दी | फिर राम जी ने लंका जाने के लिए समुन्दर से रास्ता लेने की गुहार की | श्री राम की विनती नहीं सवीकार करने से राम को गुस्सा आ गया जिस से डर कर नल और नील ने पुल बनाने का उपाय बताया |
हम ने यहाँ पर कोशिश की है की सुंदरकांड पाठ (sunderkand path pdf) को हम आप को एक अच्छे ढंग से बताया फिर भी हमारी तरफ से हुई त्रुटी को हमें कमेन्ट कर के जरुर बताये |
सुन्दरकाण्ड पाठ (Sundar Kand) की सम्पूर्ण पीडीऍफ़ फाइल को डाउनलोड यहाँ से करे
सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड पाठ
।। पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड।।
।।आसन।।
कथा प्रारम्भ होत है। सुनहुँ वीर हनुमान।।
राम लखन जानकी। करहुँ सदा कल्याण।।
सुंदरकांड पाठ हिंदी में लिरिक्स , संपूर्ण सुंदरकांड हिंदी में
श्लोक –
शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् ।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ।।१।।
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ।।२।।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।३।।
जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।।
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।।
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।।
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।।
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।।
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।।
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।।
दोहा – हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।१।।
———
जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।।
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।।
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।।
राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।।
तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।।
कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।।
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।।
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।।
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।
दोहा-राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।२।।
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निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।।
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।।
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।।
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।।
ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।।
तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।।
नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।।
सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।।
उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।।
गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।।
अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।।
छं=कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।।
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै।।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै ।।२।।
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं।।
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं।।३।।
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।।
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।।३।।
दोहा-पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार।।३।।
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मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।।
नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।।
जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।।
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।।
पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।।
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।।
बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।।
तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।।
दोहा -तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।४।।
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सम्पूर्ण सुंदरकांड आप यहाँ निचे दिए गए डाउनलोड लिंक से डाउनलोड कर सकते है |
सुंदरकांड Pdf में देने के लिये धन्यवाद।