Santoshi Mata Vrat Katha | Shukravar Santoshi Mata Vrat Katha | शुक्रवार व्रत कथा | संतोषी माता की कथा
Shukravar Santoshi Mata Vrat Katha : नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए मां संतोषी माता के व्रत की कथा pdf (Santoshi Mata Vrat Katha) का पीडीएफ फाइल लेकर आए हैं |तो आप यहां से मां संतोषी जी की पूरी व्रत कथा(संतोषी माता के व्रत की कथा pdf) पढ़ सकते हैं और नीचे दिए गए डाउनलोड लिंक से आप इसको डाउनलोड भी कर सकते हैं | आप यहां पर दी गई शुक्रवार व्रत कथा या संतोषी माता व्रत कथा की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तो इस आर्टिकल को आप ध्यान से पढ़ें
santoshi mata vrat katha pdf दोस्तों जैसे कि आप जानते हो संतोषी माता को हिंदू धर्म में सुख-शांति और जीवन में खुशियां प्रदान करने वाली देवी के रूप में माना जाता है | संतोषी माता को खुश करने के लिए या प्रसन्न करने के लिए माताजी की आरती, चालीसा एवं व्रत कथा का पाठ कर सकते हैं हमने आपको एक-एक करके हर आर्टिकल में माताजी से जुड़ी सारी जानकारी प्रोवाइड करवाएंगे और उनके बारे में बताएंगे माता जी की व्रत कथा शुक्रवार के दिन व्रत करने के बाद सुबह नहाने धोने के बाद मंदिर में जाकर माता जी की व्रत कथा सुनी और सुनाई जाती है |
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ऐसा कहा जाता है कि शुक्रवार के व्रत जब शुरू कर दिए जाए उसके बाद कम से कम सोलह शुक्रवार लगातार करने चाहिए जिससे माता जी का आशीर्वाद जल्दी प्राप्त हो सके और प्रेम संतोष की प्राप्ति हो सके | संतोषी माता जी को गुड चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है और जब भी इन का व्रत करते हैं तब मिठाई ही खाई जाती है और खटाई इस दिन नहीं खाई जाती है और ना ही छुई जाती है कहा जाता है कि इस दिन मीठा खाने से आदमी मनुष्य मीठा बोलता है और उसका स्वभाव भी मीठा ही होता है |

संतोषी माता संतोष की देवी कहलाती है | यह माता पार्वती और भगवान शिव जी की पुत्री और उनके पुत्र श्री गणेश जी की बेटी है | संतोषी माता के शुभ और लाभ दो भाई हैं | अगर हम सच्चे मन से माता संतोषी जी के व्रत, व्रत कथा, चालीसा, आरती का पाठ करते हैं तो हमें निश्चित ही अच्छा फल मिलता है क्योंकि मां संतोषी जी को प्रसन्न करने से हमें माता पार्वती और शिव का आशीर्वाद गणेश जी का आशीर्वाद रिद्धि सिद्धि माता जी का आशीर्वाद भी हमें मिलता है |
माँ संतोषी व्रत कथा की जानकारी | Santoshi Mata Vrat Katha file Details
Name of the PDF File | Santoshi Mata Vrat Katha pdf ( माँ संतोषी व्रत कथा ) |
PDF File Size | 7.4 MB |
Categories | Religious |
Source | PDFHIND.COM |
Uploaded on | 09-01-2022 |
PDF Language | HINDI & ENGLISH |
माँ संतोषी माता के व्रत की कथा pdf पढने के फायेदे | Benifit of Reading Santoshi Mata Vrat Katha
- माता संतोषी जी का व्रत (शुक्रवार के व्रत) से अविवाहित कन्या को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है, इसीलिए अविवाहित कन्याएं इस व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से करती है |
- माँ संतोषी जी के व्रत करने से हमारे जीवन में संतोष मय जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है |
- सांसारिक जीवन जीने के सही तरीके सिखाने में सहायक है माता संतोषी जी कि व्रत कथा |
- से हमरे शरिर में एक सकारात्मक उर्जा, बुधि, ज्ञान, तेज, भी बढ़ता है |
- श्री संतोषी माता जी का व्रत करने से हमारे कष्ट मिलते है और हमारी माता जी से मांगी गई मन्नत पूरी होती है |
- माँ संतोषी जी का व्रत करने से सुख-सोभाग्य की प्राप्ति होती है |
संतोषी माता का व्रत कैसे करे | शुक्रवार व्रत करने की विधि | How to Start Santoshi Mata Vrat Katha
संतोषी माता जी का व्रत (Santoshi Mata Vrat Katha) शुक्रवार के दिन करना चाहिय और यह व्रत करने से पहले इस के बारे में या इस व्रत को करने की विधि के बारे में जानना जरुरी है | तो आप निचे दी गई सारी बाते बड़े ही ध्यानपूर्वक पढ़े और पालन करे |
- सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले उठ कर नित्य कित्य कर स्नान कर लेवे –
- स्नान कर के सवस्थ कपडे पहन कर मंदिर या अपने पूजा के स्थान को साफ और घर को भी साफ कर पूजा सामग्री तैयार कर ले –
- उस के बाद माता जी की तस्वीर या प्रतिमा को साफ कर के विराजमान करे-
- पूजा सामग्री में फूल, सुघंधित धुप, अगरबत्ती, दीपक, घी, माता जी के लिए लाल चुनरी, जल से भरा कलश आदि –
- प्रशाद के लिए गुड़, भुने हुवे चने, नारियल, आदि ले –
- ये सब ले कर आप माता जी जयकारा लगा कर दीपक करे और प्रशाद लगाकर माता जी को फिर पाठ सुरु करे-
- जो भी इस व्रत को करे वो चाहे कथा सुनता हो या कथा कहता हो उस को प्रशाद को हाथ में रखना चाहिय और जब कथा पूरी हो जाये तब हाथ वाले प्रशाद को गाय माता को खिला देना चाहिय –
- और जो प्रशाद कलश पर रखा था वो सब को बाट दे –
- और जो कलश का पानी है वो अपने घर में सभी जगह पर छिडके और बाकि बचा पानी तुलसी जी को समर्पित करे-
- इसी प्रकार व्रत को भावपूर्वक करे आप को अच्छा ही फल प्राप्त होगा –
माँ संतोषी माता के सम्पूर्ण व्रत की कथा pdf | Santoshi Mata Vrat Katha
एक बुढिया थी जिसके सात बेटे थे. उनमे से छः कमाते थे और एक न कमाने वाला था. वह बुढिया उन छयों को अच्छी रसोई बनाकर बड़े प्रेम से खिलाती पर सातवें को बचा-खुचा झूठन खिलाती थी. परन्तु वह भोला था अतः मन में कुछ भी विचार नहीं करता था. एक दिन वह अपनी पत्नी से बोला – देखो मेरी माता को मुझसे कितना प्रेम है? उसने कहा वह तुम्हें सभी की झूठन खिलाती है, फिर भी तुम ऐसा कहते हो चाहे तो तुम समय आने पर देख सकते हो.
एक दिन बहुत बड़ा त्यौहार आया. बुढिया ने सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बनाए. सातवाँ लड़का यह बात जांचने के लिए सिर दुखने का बहाना करके पतला कपडा ओढ़कर सो गया और देखने लगा माँ ने उनको बहुत अच्छे आसनों पर बिठाया और सात प्रकार के भोजन और लड्डू परोसे. वह उन्हें बड़े प्रेम से खिला रही है. जब वे छयो उठ गए तो माँ ने उनकी थालियों से झूठन इकट्ठी की और उनसे एक लड्डू बनाया.
फिर वह सातवें लड़के से बोली “अरे रोटी खाले.” वह बोला ‘ माँ मैं भोजन नहीं करूँगा मैं तो परदेश जा रहा हूँ.’ माँ ने कहा – ‘कल जाता है तो आज ही चला जा.’ वह घर से निकल गया. चलते समय उसे अपनी पत्नी की याद आयी जो गोशाला में कंडे थाप रही थी. वह बोला – “हम विदेश को जा रहे है, आएंगे कछु काल. तुम रहियो संतोष से, धरम अपनों पाल.”
इस पर उसकी पत्नी बोली :-
जाओ पिया आनन्द से, हमारी सोच हटाए.
‘Santoshi Mata Vrat Katha’
राम भरोसे हम रहे, ईश्वर तुम्हें सहाय.
देहु निशानी आपणी, देख धरूँ मैं धीर.
सुधि हमारी ना बिसारियो, रखियो मन गंभीर.
इस पर वह लड़का बोला – ‘मेरे पास कुछ नहीं है. यह अंगूठी है सो ले और मुझे भी अपनी कोई निशानी दे दे. वह बोली मेरे पास क्या है? यह गोबर भरे हाथ है. यह कहकर उसने उसकी पीठ पर गोबर भरे हाथ की थाप मार दी. वह लड़का चल दिया. ऐसा कहते है, इसी कारण से विवाह में पत्नी पति की पीठ पर हाथ का छापा मारती है.
चलते समय वह दूर देश में पहुँचा. वह एक व्यापारी की दुकान पर जाकर बोला ‘ भाई मुझे नौकरी पर रख लो.’ व्यापारी को नौकर की जरुरत थी. अतः बोला तन्ख्वाह काम देखकर देंगे. तुम रह जाओ. वह सवेरे ७ बजे से रात की १२ बजे तक नौकरी करने लगा. थोड़े ही दिनों में सारा लेन देन और हिसाब – किताब करने लगा. सेठ के ७ – ८ नौकर चककर खाने लगे. सेठ से उसे दो तीन महीने ने आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया. बारह वर्ष में वह नामी सेठ बन गया और उसका मालिक उसके भरोसे काम छोड़कर कहीं बाहर चला गया.
उधर उसकी औरत को सास और जिठानियाँ बड़ा कष्ट देने लगी. वे उसे लकडी लेने जंगल में भेजती. भूसे की रोटी देती, फूटे नारियल में पानी देती. वह बड़े कष्ट से जीवन बिताती थी. एक दिन जब वह लकडी लेने जा रही थी तो रास्ते में उसने कई औरतों को व्रत करते देखा. वह पूछने लगी – ‘बहनों यह किसका व्रत है, कैसे करते है और इससे क्या फल मिलता है ? तो एक स्त्री बोली ‘ यह संतोषी माता का व्रत है इसके करने से मनोवांछित फल मिलता है, इससे गरीबी, मन की चिंताएँ, राज के मुकद्दमे. कलह, रोग नष्ट होते है और संतान, सुख, धन, प्रसन्नता, शांति, मन पसंद वर मिले व बाहर गये हुए पति के दर्शन होते है.’ उसने उसे व्रत करने की विधि बता दी.
उसने रास्ते में सारी लकडियाँ बेच दी व गुड और चना ले लिया. उसने व्रत करने की तैयारी की. उसने सामने एक मंदिर देखा तो पूछने लगी ‘ यह मंदिर किसका है ?’ वह कहने लगे ‘ यह संतोषी माता का मंदिर है.’ वह मंदिर में गई और माता के चरणों में लोटने लगी. वह दुखी होकर विनती करने लगी ‘माँ ! मैं अज्ञानी हूँ. मैं बहुत दुखी हूँ. मैं तुम्हारी शरण में हूँ. मेरा दुःख दूर करो.’ माता को दया आ गयी. एक शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया और अगले शुक्रवार को पति का भेजा हुआ धन मिला. अब तो जेठ जेठानी और सास नाक सिकोड़ के कहने लगे ‘ अब तो इसकी खातिर बढेगी, यह बुलाने पर भी नहीं बोलेगी.’
वह बोली ‘ पत्र और धन आवे तो सभी को अच्छा हैं.’ उसकी आँखों में आंसू आ गये. वह मंदिर में गई और माता के चरणों में गिरकर बोली हे माँ ! मैंने तुमसे पैसा कब माँगा था ? मुझे तो अपना सुहाग चाहिये. मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा करना मांगती हूँ. तब माता ने प्रसन्न होकर कहा – ‘जा बेटी तेरा पति आवेगा.’ वह बड़ी प्रसन्नता से घर गई और घर का काम काज करने लगी. उधर संतोषी माता ने उसके पति को स्वप्न में घर जाने और पत्नी की याद दिलाई. उसने कहा माँ मैं कैसे जाऊँ, परदेश की बात है, लेन – देन का कोई हिसाब नहीं है.’ माँ ने कहा मेरी बात मान सवेरे नहा – धोकर मेरा नाम लेकर घी का दीपक जलाकर दंडवत करके दुकान पर बैठना. देखते देखते सारा लेन – देन साफ़ हो जायेगा. धन का ढेर लग जायेगा.
सवेरे उसने अपने स्वप्न की बात सभी से कही तो सब दिल्लगी उडाने लगे. वे कहने लगे कि कही सपने भी सत्य होते है. पर एक बूढे ने कहा ‘ भाई ! जैसे माता ने कहा है वैसे करने में का डर है ?’ उसने नहा धोकर, माता को दंडवत करने घी का दीपक जलाया और दुकान पर जाकर बैठ जाया. थोडी ही देर में सारा लेन देन साफ़ हो गया, सारा माल बिक गया और धन का ढेर लग गया. वह प्रसन्न हुआ और घर के लिए गहने और सामान वगेरह खरीदने लगा| वह जल्दी ही घर को रवाना हो गया.
उधर बेचारी उसकी पत्नी रोज़ लकडियाँ लेने जाती और रोज़ संतोषी माता की सेवा करती. उसने माता से पूछा – हे माँ ! यह धूल कैसी उड़ रही है ? माता ने कहा तेरा पति आ रहा है. तूं लकडियों के तीन बोझ बना लें. एक नदी के किनारे रख, एक यहाँ रख और तीसरा अपने सिर पर रख ले. तेरे पति के दिल में उस लकडी के गट्ठे को देखकर मोह पैदा होगा. जब वह यहाँ रुक कर नाश्ता पानी करके घर जायेगा, तब तूँ लकडियाँ उठाकर घर जाना और चोक के बीच में गट्ठर डालकर जोर जोर से तीन आवाजें लगाना, ” सासूजी ! लकडियों का गट्ठा लो, भूसे की रोटी दो और नारियल के खोपडे में पानी दो. आज मेहमान कौन आया है ?” इसने माँ के चरण छूए और उसके कहे अनुसार सारा कार्य किया.
वह तीसरा गट्ठर लेकर घर गई और चोक में डालकर कहने लगी “सासूजी ! लकडियों का गट्ठर लो, भूसे की रोटी दो, नारियल के खोपडे में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है ?” यह सुनकर सास बाहर आकर कपट भरे वचनों से उसके दिए हुए कष्टों को भुलाने ले लिए कहने लगी ‘ बेटी ! तेरा पति आया है. आ, मीठा भात और भोजन कर और गहने कपडे पहन.’ अपनी माँ के ऐसे वचन सुनकर उसका पति बाहर आया और अपनी पत्नी के हाथ में अंगूठी देख कर व्याकुल हो उठा. उसने पूछा ‘ यह कौन है ?’ माँ ने कहा ‘ यह तेरी बहू है आज बारह बरस हो गए, यह दिन भर घूमती फिरती है, काम – काज करती नहीं है, तुझे देखकर नखरे करती है. वह बोला ठीक है. मैंने तुझे और इसे देख लिया है, अब मुझे दुसरे घर की चाबी दे दो, मैं उसमे रहूँगा.
माँ ने कहा ‘ ठीक है, जैसी तेरी मरजी.’ और उसने चाबियों का गुच्छा पटक दिया. उसने अपना सामान तीसरी मंजिल के ऊपर के कमरे में रख दिया. एक ही दिन में वे राजा के समान ठाठ – बाठ वाले बन गये. इतने में अगला शुक्रवार आया. बहू ने अपनी पति से कहा – मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. वह बोला बहुत अच्छा ख़ुशी से कर ले. जल्दी ही उद्यापन की तैयारी करने लगी. उसने जेठ के लड़कों को जीमने के लिए कहा. उन्होंने मान लिया. पीछे से जिठानियों ने अपने बच्चों को सिखादिया ‘ तुम खटाई मांगना जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो.’ लड़कों ने जीम कर खटाई मांगी. बहू कहने लगी ‘ भाई खटाई किसी को नहीं दी जायेगी. यह तो संतोषी माता का प्रसाद है.’ लडके खड़े हो गये और बोले पैसा लाओ| वह भोली कुछ न समझ सकी उनका क्या भेद है|
उसने पैसे दे दिये और वे इमली की खटाई मंगाकर खाने लगे. इस पर संतोषी माता ने उस पर रोष किया. राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गये. वह बेचारी बड़ी दुखी हुई और रोती हुई माताजी के मंदिर में गई और उनके चरणों में गिरकर कहने लगी ‘ हे ! माता यह क्या किया ? हँसाकर अब तूँ मुझे क्यों रुलाने लगी ?’ माता बोली पुत्री मुझे दुःख है कि तुमने अभिमान करके मेरा व्रत तोडा है और इतनी जल्दी सब बातें भुला दी. वह कहने लगी – ‘ माता ! मेरा कोई अपराध नहीं है. मुझे तो लड़को ने भूल में दल दिया. मैंने भूल से ही उन्हें पैसे दे दिये. माँ मुझे क्षमा करो मैं दुबारा तुम्हारा उद्यापन करुँगी.’ माता बोली ‘ जा तेरा पति रास्ते में आता हुआ ही मिलेगा.’ उसे रास्ते में उसका पति मिला. उसके पूछने पर वह बोला ‘ राजा ने मुझे बुलाया था ‘ मैं उससे मिलने गया था. वे फिर घर चले गये.
कुछ ही दिन बाद फिर शुक्रवार आया. वह दुबारा पति की आज्ञा से उद्यापन करने लगी. उसने फिर जेठ के लड़को को बुलावा दिया. जेठानियों ने फिर वहीं बात सिखा दी. लड़के भोजन की बात पर फिर खटाई माँगने लगे. उसने कहा ‘ खटाई कुछ भी नहीं मिलेगी आना हो तो आओ.’ यह कहकर वह ब्राह्मणों के लड़को को लाकर भोजन कराने लगी. यथाशक्ति उसने उन्हें दक्षिणा दी. संतोषी माता उस पर बड़ी प्रसन्न हुई, माता की कृपा से नवमे मास में उसके एक चंद्रमा के समान सुन्दर पुत्र हुआ. अपने पुत्र को लेकर वह रोजाना मंदिर जाने लगी.
एक दिन संतोषी माता ने सोचा कि यह रोज़ यहाँ आती है. आजमैं इसके घर चलूँ. इसका सासरा देखूं. यह सोचकर उसने एक भयानक रूप बनाया. गुड व् चने से सना मुख, ऊपर को सूँड के समान होठ जिन पर मक्खियां भिनभिना रही थी. इसी सूरत में वह उसके घर गई. देहली में पाँव रखते ही उसकी सास बोली ‘ देखो कोई डाकिन आ रही है, इसे भगाओ नहीं तो किसी को खा जायेगी.’ लड़के भागकर खिड़की बन्द करने लगे. सातवे लड़के की बहु खिड़की से देख रही थी. वह वही से चिल्लाने लगी ” आज मेरी माता मेरे ही घर आई है.’ यह कहकर उसने बच्चे को दूध पीने से हटाया. इतने में सास बोली ‘ पगली किसे देख कर उतावली हुई है, बच्चे को पटक दिया है.’
इतने में संतोषी माता के प्रताप से वहाँ लड़के ही लड़के नज़र आने लगे. बहू बोली ” सासूजी मैं जिसका व्रत करती हूँ, यह वो ही संतोषी माता हैं. यह कह कर उसने सारी खिड़कियां खोल दी. सबने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे – “हे माता ! हम मूर्ख हैं, अज्ञानी है, पापिनी है, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानती, तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बहुत बड़ा अपराध किया है. हे जगत माता ! आप हमारा अपराध क्षमा करो.” इस पर माता उन पर प्रसन्न हुई. बहू को जैसा फल दिया वैसा माता सबको दें.
इसी प्रकार सम्पूर्ण संतोषी माता के व्रत की कथा pdf (Santoshi Mata Vrat Katha) समाप्त हुई
कैसे करे प्रसन्न संतोषी माता जी को ?
इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष तथा परिवार के सभी लोग खट्टी चीज का न ही स्पर्श करें और न ही सेवन करे। माता संतोषी जी का प्रशाद वितरण जरुर करे | इन बातो को ध्यान में रखने से माता की कृपा, और आशर्वाद हमेशा बना रहता है।
कब से करना सुरु करे माता संतोषी जी का व्रत ?
संतोषी माता जी या शुक्रवार का व्रत को शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रावर के दिन से सुरु करना चैये माता जी का व्रत
संतोषी माता जी के कितने करे व्रत ?
माता जी के विशेष कृपया प्राप्त करने के लिए कम से कम आप को 16 शुक्रवार के व्रत करना चाहिय
संतोषी माता जी के व्रत में कौन-कौन सी चीजे खा सकते है ?
शुक्रवार का व्रत करने के बाद शाम से समय आप फल, दूध, रोटी, चना, गुड़, हलवा आदि चीजे खा सकते है और ध्यान रखे आप को कोई भी खट्टी चीजे नहीं खानी है |