[PDF] Shri Dashavatara Stuti Lyrics in Sanskrit Download | श्री दशावतार स्तुति लिरिक्स संस्कृत में डाउनलोड करें

Written by Editorial Team

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दशावतार स्तुति लिरिक्स पीडीऍफ़ : नमस्कार दोस्तों आज हम आप को दशावतार स्तुति (Shri Dashavatara Stuti) का पीडीऍफ़ ले कर आये है तो आप यहाँ पर पीडीऍफ़ डाउनलोड कर सकते है और साथ ही यहाँ पर पढ़ सकते है | दोस्तों हम आप को हर पोस्ट में कोशिश करते है की आप को उस टॉपिक से अच्छा ज्ञान मिल सके |

प्यारे भगतो दशावतार स्तुति (Shri Dashavatara Stuti) में दशावतार का मतलब होता है दस अवतार वाले ( जिस के दस अवतार हो ) | Shri Dashavatara Stuti में भगवन विष्णु जी के दस अवतारों का वर्णन किया गया है | त्रिदेवो में बर्मा, विष्णु, महेश तीन देवताओ को कहा जाता है उन में से ही विष्णु जी आते है | भगवान विष्णु जी हिन्दू धर्म में सबसे लोकप्रिय देवताओ में आते है |

हिन्दू धर्म के अनुसार भगवन विष्णु ने अपना अवतार जब-जब लिया है जब-जब इस सार्ष्टि पर पाप, अधर्म, अत्याचार आदि फेलने लगा या फिर दुष्ट, राक्षसों का पाप बढ़ा है | इन सब का विनाश करने भगवान विष्णु जी ने अपना एक अवतार लिया है |

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Guru Govind Sahib ji | गुरु गोविंद साहिब जी

दोस्तों अब हम आपको यहां पर गुरु गोविंद सिंह जी के बारे में संक्षेप में बताइए गुरु गोबिंद साहिब जी का जन्म पटना में हुआ था जिस जगह गुरु गोविंद साहिब जी का जन्म हुआ वहां पर अब श्री हरीमंदिर जी पटना साहिब स्थित है कुछ समय पटना में बिताने के बाद अपने परिवार के साथ 1670 ईस्वी में पंजाब आ गए थे |

कुछ समय बाद कश्मीरी पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम धर्मअपनाने के लिए लोगो को बाध्य किया जाने लगा तब गुरु गोविंद सिंह जी के पिता श्री तेज बहादुर जी सामने आए और खुलकर विरोध किया 1675 ईसवी में औरंगजेब ने चांदनी चौक (दिल्ली) तेज बहादुर सिंह जी का सिर कटवा दिया | उसके 1 साल बाद 1676 ईस्वी में गुरु गोविंद साहिब जी को सिखों के दसवें गुरु के रूप में मानना गया चुना गया |

Shri Dashavatara Stuti

Shri Dashavatara Stuti pdf details |श्री दशावतार स्तुति पाठ की जानकारी

Name of the PDF FileShri Dashavatara Stuti | ( श्री दशावतार स्तुति )
PDF File Size3.8 MB
CategoriesReligious
SourcePDFHIND.COM
Uploaded on24-12-2021
PDF LanguageSANSKRIT & HINDI

भगवान विष्णु जी के 10 अवतार

दोस्तों विष्णु जी के दस अवतारों को हम ने एक लिस्ट के माध्यम से क्रम से बताया है |

  1. मत्स्य : पुराणों के अनुसार यह अवतार सार्ष्टि को महाप्रलय से बचने के लिए लिया गया |
  2. कुर्म : ग्रंथो के अनुसार यह अवतार समुन्द्र मंथन में मदद के लिए कछुवा का लिया था |
  3. वराह : हिरण्याक्ष ने जब पर्थ्वी को समुन्द्र में छिपा दिया तब श्री बह्मा जी की नाक से वराह का अवतार लिया |
  4. नरसिंह : हिरण्यकशिपू का वध करने के लिए |
  5. वामन : बलि से स्वर्गलोक का अधिकार पुनः लिया |
  6. श्री राम : राक्षसराज रावण का वध करने के लिए |
  7. श्री कृष्ण : कंस का वध करने के लिए
  8. श्री परशुराम : सहस्त्रबाहु का वध करने के लिए |
  9. बुद्ध अवतार : दैत्यो की शक्ति को कम करने के लिए |
  10. कल्कि अवतार : इन का अवतार कलियुग या सतयुग के संधिकाल में होगा |

Shri Dashavatara Stuti in Sanskrit | श्री दशावतार स्तुति लिरिक्स संस्कृत में

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम ।
विहितवहित्रचरित्रम खेदम ।
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥1॥
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे ।
धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।
केशव धृतकच्छपरुप जय जगदीश हरे ॥2॥
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना ।
शशिनि कलंकलेव निमग्ना ।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥3॥
तव करकमलवरे नखमद्भुतश्रृंगम ।
दलितहिरण्यकशिपुतनुभृगंम ।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ॥4॥
छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन ।
पदनखनीरजनितजनपावन ।
केशव धृतवामनरुप जय जगदीश हरे ॥5॥
क्षत्रिययरुधिरमये जगदपगतपापम ।
सनपयसि पयसि शमितभवतापम ।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ॥6॥
वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम ।
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम ।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ॥7॥
वहसि वपुषे विशदे वसनं जलदाभम ।
हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम ।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ॥8॥
निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम ।
सदयहृदयदर्शितपशुघातम ।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ॥9॥
म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम ।
धूमकेतुमिव किमपि करालम ।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ॥10॥
श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम ।
श्रृणु सुखदं शुभदं भवसारम ।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ॥11॥

Shri Dashavatara Stuti

Shri Dashavatara Stuti in hindi | श्री दशावतार स्तुति लिरिक्स हिंदी में

हे जगदीश्वर! नौका जैसे बिना किसी खेदके सहर्ष सलिलस्थित किसी वस्तुका उद्धार करती है, वैसे ही आपने बिना किसी परिश्रमके निर्मल चरित्रके समान प्रलय जलधिमें मत्स्यरूपमें अवतीर्ण होकर वेदोंको धारणकर उनका उद्धार किया है। हे मत्स्यावतारधारी श्रीभगवान्! आपकी जय हो ॥1॥
हे केशिनिसूदन! आपने कूर्मरूप अंगीकार कर अपने विशाल पृष्ठके एक प्रान्तमें पृथ्वीको धारण किया है, जिससे आपकी पीठ व्रणके चिन्होंसे गौरवान्वित हो रही है। आपकी जय हो ॥2॥
हे जगदीश! जिस प्रकार चन्द्रमा अपने भीतर कलंकके सहित सम्मिलित रूपसे दिखाई देता है, उसी प्रकार आपके दाँतों के ऊपर पृथ्वी अवस्थित है ॥3॥
हे जगदीश्वर! आपने नृसिंह रूप धारण किया है। आपके श्रेष्ठ करकमलमें नखरूपी अदभुत श्रृंग विद्यमान है, जिससे हिरण्यकशिपुके शरीरको आपने ऐसे विदीर्ण कर दिया जैसे भ्रमर पुष्पका विदारण कर देता है, आपकी जय हो ॥4॥
हे सम्पूर्ण जगतके स्वामिन् ! आप वामन रूप धारणकर तीन पग धरतीकी याचनाकी क्रियासे बलि राजाकी वंचना कर रहे हैं। यह लोक समुदाय आपके पद-नख-स्थित सलिलसे पवित्र हुआ है। हे अदभुत वामन देव ! आपकी जय हो ॥5॥
हे जगदीश! आपने भृगु (परशुराम) रूप धारणकर क्षत्रियकुलका विनाश करते हुए उनके रक्तमय सलिलसे जगतको पवित्र कर संसारका सन्ताप दूर किया है। हे भृगुपतिरूपधारिन् , आपकी जय हो ॥6॥हे जगत् स्वामिन् श्रीहरे ! हे केशिनिसूदन ! आपने रामरूप धारण कर संग्राममें इन्द्रादि दिक्पालोंको कमनीय और अत्यन्त मनोहर रावणके किरीट भूषित शिरोंकी बलि दशदिशाओंमें वितरित कर रहे हैं । हे रामस्वरूप ! आपकी जय हो ॥7॥
हे जगत् स्वामिन् ! आपने बलदेवस्वरूप धारण कर अति शुभ्र गौरवर्ण होकर नवीन जलदाभ अर्थात् नूतन मेघोंकी शोभाके सदृश नील वस्त्रोंको धारण किया है। ऐसा लगता है, यमुनाजी मानो आपके हलके प्रहारसे भयभीत होकर आपके वस्त्रमें छिपी हुई हैं । हे हलधरस्वरूप ! आपकी जय हो ॥8॥
हे जगदीश्वर! आपने बुद्ध शरीर धारण कर सदय और सहृदय होकर यज्ञ विधानों द्वारा पशुओंकी हिंसा देखकर श्रुति समुदायकी निन्दा की है। आपकी जय हो ॥9॥
हे जगदीश्वर श्रीहरे ! हे केशिनिसूदन ! आपने कल्किरूप धारणकर म्लेच्छोंका विनाश करते हुए धूमकेतुके समान भयंकर कृपाणको धारण किया है । आपकी जय हो ॥10॥
हे जगदीश्वर ! हे दशबिध रूपोंको धारण करनेवाले भगवन् ! आप मुझ जयदेव कविकी औदार्यमयी, संसारके सारस्वरूप, सुखप्रद एवं कल्याणप्रद स्तुतिको सुनें ॥11॥

Shri Dashavatara Stuti

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