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नमस्कार ! आप का PDFHIND.COM में स्वागत है | जैसे की आप जानते है की आज की इस पोस्ट में हम आप को भगवान शनि देव जी की आरती या शनिवार की आरती का पीडीऍफ़ और आरती का लिरिक्स ले कर आये है |
जैसे की आप सब जानते ही हो की भगवान शनिदेव अग्नी के देवता भगवान सूर्य के पुत्र है | भगवन शनिदेव को अच्छे, बुरे कर्मो के फल देने वाले होते है अथार्थ शनिदेव को दंडाधिकारी माना जाता है | शनिदेव को न्याय के देवता कहे जाते है इसी लिए 9 ग्रहों के देवता के रूप में पूजे जाते है | शनिवार को शनि जी की आरती करनी चाहिए, क्योकि शनिवार का दिन शनि जी का दिन माना जाता है| इसीलिए शनिवार के दिन करे शनी की आरती |
एसे कहा जाता है की जो भगत हर शनिवार को शनि जी के मंदिर में तेल का चढ़ावा कर श्री शनि जी की आरती का समरण करता है| उस के के चल रहे शनि दशा के बुरे प्रभाव से बचा जाता है | एसे भी कहा जाता है कि धर्मराज होने की वजह से प्राय: शनि पापी व्यक्तियों के लिए दुख और बहुत ही कष्टकारक होता है| लेकिन सच्चे और प्यारो भगतो के लिए यह यश, धन, पद और सम्मान का ग्रह है। शनि की दशा आने पर जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।
शनि देव की पीडीऍफ़ फाइल की जानकारी |Shani Dev ki lyrics PDF file details
Name of the PDF File | Shani Dev Aarti & Chalisa lyrics PDF in Hindi ( शनि देव की आरती और चालीसा की पीडीऍफ़ फाइल) |
PDF File Size | 1.6 MB || 3.9 MB |
Categories | Religious |
Source | pdfhind.com |
Uploaded on | 16-12-2021 |
PDF Language | Hindi (हिंदी) |
Shani Dev ji ki Aarti lyrics in hindi | शनि देव जी की आरती (शनिवार की आरती )
शनिवार की आरती को आप को यहाँ पर पढ़ सकते है साथ ही आप इस को पीडीऍफ़ फाइल में भी डाउनलोड कर सकते है
!! जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी,
Shani dev ki aarti
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी,
नालाम्बर धार नाथ गज की अवसारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी,
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी,
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! दे दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी,
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
Shani Dev Chalisa in Hindi Lyrics | शनिदेव चालीसा का सम्पूर्ण पाठ
शनिवार के दिन शनि जी की आरती करने से शनि जी प्रशन होते है | और अगर हम आरती के साथ शनि चालीसा का भी पाठ करते है तो भगवान शनि देव जी जल्दी खुश होते है | तो आइये अब हम आप को यहाँ पर शनि चालीसा पाठ का लिरिक्स देते है |
॥दोहा॥
Shani Chalisa
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
॥चौपाई॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं। रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत वन रामहिं दीन्हो। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥
बनहूं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलाखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हों। तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहि गहयो जब जाई। पार्वती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उधारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। दिग्ज हय गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अदभुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥